पर्व है पुरुषार्थ का

दीप के दिव्यार्थ का

 देहरी पर दीप एक जलता रहे

अंधकार से युद्ध यह चलता रहे

 हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा

जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा

 दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है

कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है

 

आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए

प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!

 

जगमग दिये की तरहजलते रहो तुम सारी उम्र

मन में छुपे अंधेरों कोखलते रहो तुम सारी उम्

 

 झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना

आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!



दिवाली के पटाखों की तरहदर्द के छाले फोड़ दो

हो बुराई जितनी भी मन मेंआज तुम सब छोड़ दो

 

रौशनी की रात आई हैखुशियों की सौगात लाई है

देखो आज ज़मीन पर यूँसितारों की बारात आई है






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