प्रश्नों में अभिप्राय प्रीत का
जब जब भी पूछा जाता,
जाने क्यू मेरे अधरों पे
नाम तुम्हारा ही आता ।
यूँ जुड़ गया है नाता तुमसे
मज़मे में भी खुद को
तेरे साथ तन्हा पाता ।



यूँ रुला के भी हँसाना कोई तुझसे सीखे ऐ ज़िन्दगी,
तेरे कुछ पल सज़ा तो कुछ इश्क़ की रज़ा दे जाते है ।


सफर ज़ारी है हमसफ़र की तलाश में।
पढ़ ले काश कोई अरमान मेरी दिल की किताब में ।



तेरी बेरुखी का स्वाद भी कुछ ऐसा था जालिम,
जैसे तेरे इश्क़ के नमक में  ज़हर खोल दिया हो किसी ने।
जाने क्यू हम दिल का वज़ीर भी उसे ही बनाते है
जो हर बार हारने पे हमे मजबूर करता है ।





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